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श्रवणबेलगोल के स्मारक सम्भव नहीं जान पड़ता कि ५७ फुट की मूर्ति खोद निकालने के योग्य पाषाण कहीं अन्यत्र से लाकर उस ऊँची पहाड़ी पर प्रतिष्ठित किया जा सका होगा। इससे यही ठीक अनुमान होता है कि उसी स्थान पर किसी प्रकृतिप्रदत्त स्तम्भाकार चट्टान को काटकर इस मूर्ति का आविष्कार किया गया है। कम से कम एक हज़ार वर्ष से यह प्रतिमा सूर्य, मेघ, वायु आदि प्रकृतिदेवी की अमोघ शक्तियों से बातें कर रही है पर अब तक उसमें किसी प्रकार की थोड़ी भी क्षति नहीं हुई। मानो मूर्तिः कार ने उसे आज ही उद्घाटित की हो।
एक पहाड़ी के ऊपर प्रतिष्ठित इतनी भारी मूर्ति को मापना भी कोई सरल कार्य नहीं है। इसी से उसकी ऊँचाई के सम्बन्ध में मतभेद है। बुचानन साहब ने उसकी ऊँचाई ७० फुट ३ इञ्च और सर अर्थर वेल्सली ने ६० फुट ३ इञ्च दी है। सन् १८६५ में मैसूर के चीफ कमिश्नर मि० बोरिंग ने मूर्ति का ठीक ठीक माप कराकर उसकी ऊँचाई ५७ फुट दर्ज की थी। सन् १८७१ ईस्वी में मस्तकाभिषेक के समय कुछ सरकारी अफसरों ने मूत्ति का माप लिया था जिससे निम्नलिखित माप मिले :
फुट इञ्च चरण से कर्ण के अधोभाग तक ५०-० कर्ण के अधोभाग से मस्तक तक
(लगभग) ६-६
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