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________________ १६४ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख १०२ (२२७) उसी स्तम्भ के पूर्व मुख पर (शक सं० १४५८) इ मोदल...तत्संवत्सरदलु गेरसोप्पेय चवुडिसट्टिरिगे हूविन चेन्नय्यनु कोट धर्मसाधनद सम्बन्ध नन्न क्षेत्रवु अड हाकिरलागि नीवु आक्षेत्रवनु बिडिसि को............... । [चेनय्य माली ( हूविन ) ने चवुडि सेट्टि को यह 'धर्म-साधन' दिया कि 'आपने मेरी जमीन रहन से मुक्त की है इसलिए मैं...।] १०३ ( २२८) उसी मण्डप में तृतीय स्तम्भ के पूर्व मुख पर (शक सं० १४३२) सखवरुष१४३२ डनेय शुक्लसंवत्सरद बैशाख ब० १०लू मण्डलेश्वरकुलो ङ्ग चङ्गाल्वमहदेवमहीपालन प्रधानसिरोमणि केशव-नाथ-वर-पुत्र कुल-पवित्रं जिनधर्मसहायप्रतिपालकरह बोम्यणमन्त्रिसहोदररह सम्यक्तुचूड़ामणि चेनबोम्मरसन नजरायपट्टणद श्रावकभव्यजनङ्गल गोष्टिसहाय श्री गुम्मटस्वामिय बल्लिवाडव जीर्णोद्धारव माडिसिदरु श्री॥ [मण्डलेश्वर कुलोत्तुंग चङ्गाल्व महदेव महीपाल के प्रधान मन्त्री, केशवनाथ के पुत्र, वोम्यण मन्त्री के भ्राता चन्न बोम्मरस व नाराय पट्टण के श्रावकों ने गोम्मट स्वामी के 'बल्लिवाड' ( ? उपर की मजिल) का जीर्णोद्धार कराया।] Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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