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१९२ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख पुत्र पुट्ट देवराजै अरसु ने गोम्मट स्वामी की वार्षिक पाद पूजा के लिए उक्त तिथि को १०० 'वरह' का दान किया।]
टट (२२४) उसी मण्डप में एक द्वितीय स्तम्भ के
पश्चिम मुख पर
(शक सं० १४५८) श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात्त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ १॥
सखवर्ष साविरद १४५६ तनेय विलम्बि संवत्सरद माघ शुद्ध ५ यलु गेरसोप्पेय चवुडिस टिरु अगणिबोम्मय्यन मग कम्भय्यनु तन्न क्षेत्र अडहागिरलागि चवुडिस टिरु अडनु बिडिसि कोट्ट दक्के वोन्दु तण्डक्के आहारदान त्यागद ब्रह्मन मुन्दण हूविन तोट वोन्दु पडि अक्कि अक्षतेपुञ्ज इष्टनु आचन्द्रार्कस्थायियागि नावु नडसि बहेनु मङ्गलम श्री श्री श्री श्री श्रो॥
[गेरसोप्पे के चबुडि सेटि ने मेरी भूमि रहन से मुक्त कर दी है इसलिए मैं अगणि बोम्मय्य का पुत्र कम्भिय्य सदैव निम्नलिखित दान का पालन करूँगा-एक संघ ( तण्ड ) को श्राहार, त्यागद ब्रह्म के सामने के बाग (की देख-रेख ) व अक्षत पुञ्ज के लिए एक पडि' तण्डुल ।
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