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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख
८८ (२२३) अष्टदिक्पालक मण्डप में एक स्तम्भ पर
(शक सं० १७४८) ( पूर्व मुख)
श्री स्वस्ति श्रीविजयाभ्युदय शालिवाहन शख बरुष १७४८ ने सन्द वर्तमानक्के सलुव व्ययनामसंवत्सरद फाल्गुण ब५ भानुवारदल्लु कास्यपगोत्रे अहनियसूत्रे वृषभप्रवरे प्रथमानुयोगशाखायां श्रीचावुण्डराज वंशस्थराद बिलिकेरे अनन्तराजै अरसिनवर प्रपौत्र तोटदेवराजै अरसिनवर पौत्र सत्यमङ्गलद चलुवै-अरसिनवर पुत्र श्रीमन्महिसूरपुरवराधीश श्रीकृष्णराजबडेयरवर सम्मुखदल्लि भारिगाटु कन्दाचार सवारकचेरि( उत्तर मुख)
यिलाखे भक्षि देवराजै अरसिनवरु श्रीगोमटेश्वरस्वामियवर मस्तकाभिषेकपूजोत्सवदिवस स्वर्गस्थराद्दक्के श्रीमठदिन्द वर्षप्रति वर्षदल्लु श्रीगोमटेश्वरस्वामिय वरिगे पादपूजे मुन्ताद सेवार्थ नडेयुवहागे यिवर पुत्रराद पुट्टदेवराजै अरसिनवरु १०० वरह हाकिरुव पुदुवट्टिन सेवेगे भद्रं भूयाद्वद्धतां जिनशासनं । श्री।
[काश्यप गोत्र, अहनिय सूत्र, वृषभ प्रवर और प्रथमानुयोग शाखा में चावुण्डराज के वंशज, बिलिकेरे अनन्तराजै अरसु के प्रपौत्र, तोटदेवराजै अरसु के पौत्र व सत्यमङ्गल के चलुवै अरसु के पुत्र, मैसूर नरेश श्री कृष्णाज बडेयर के प्रधान अङ्गरक्षक ( भक्षि ) देवराजै अरसु की मृत्यु गोम्मटेश्वर के मस्ताकाभिषेक के दिवस हुई। अतएव उनके
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