________________
१-६०
विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख
[ होय्सल नरेश श्री वीर नारसिंह के समय में उक्त तिथि को होनचगेरे के मादय्य के पुत्र सम्भुदेव ने महामण्डलाचार्य नयकीति देव के शिष्य चन्द्रप्रभदेव से मात्तिय करे की उक्त भूमि खरीदकर उसे गोम्मट देव और चतुर्विंशति तीर्थंकर के दुग्ध पूजन के लिये प्रदान कर दी । ] ८७ (२४७)
उपर्युक्त लेख के नीचे
( सम्भवतः शक सं० ११६७ )
स्वस्ति श्रीभावस ंवत्सरद भाद्रपद सुद्ध ५ आदिवार दलु श्रीगोम्मटदेवर नित्याभिषेक के अमृतपडिगे श्रीप्रभाचन्द्रभट्टारकदेवरगुड्डु गेरसपेय गोविन्दसेट्टिय मग आदियन अक्षयभण्डारवागि इरिसिद गद्या नाल्कु तिङ्गलिङ्गो होङ्ग हा बडि प्रबडियलि नित्याभिषेकक्के वब्बल हाल नडसुवरु ई-होनिङ्ग माणिक्यनकर एल में ओडेयरु | प्राचन्द्रार्कतारं बरं सवन्तागि नडसुवरु | मङ्गलमहा श्री श्री श्री ॥
[ उक्त तिथि को गेरसपे के गोविन्द सेट्टि के पुत्र व प्रभाचन्द्र भट्टारक देव के शिष्य श्रादियण्ण ने गोम्मट्टदेव के नित्याभिषेक के लिए ४ गद्याण का दान किया । इस रकम के एक 'होन' पर एक ' हाग' मासिक व्याज की दर से एक 'बल' दुग्ध प्रति दिन दिया जाना चाहिए । ]
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org