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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख नित्यपडि मूरुमान हालनु अभिषेकक्के कोट्ट ग ३ क्क होन्न बडिगे हाल नडयिसुवरु माणिकनखर नडेयिसुवरु प्राचन्द्रार्कवुल्लनक मङ्गलमहा श्री ॥
[गोम्मट देव के नित्याभिषेक के हेतु सोमि सेटि के पुत्र हलसूरनिवासी केति सेटि ने ३ 'मान' दूध के लिए ३ग का दान दिया जिसके व्याज से दूध लिया जावे ।]
८६ ( २४६ ) उसी पाषाण की दायीं बाजू पर
(शक सं० ११८६) श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलान्छन । जीयात्त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ १ ॥ श्रीमत्प्रतापचक्रवर्ति होयसल श्रीवीरनारसिहदेवरसरु श्रीमद्राजधानिदोरसमुद्रदलु सुखसङ्कथा विनोददि राज्य गेटवुत्तमिरे शकवरुष ११८६ नेय श्रीमुखसंवत्सरद श्रावण सु १५
आदिवारदलु श्रीमन्महामण्डलाचार्यरु नयकीति देवर शिष्यरु चन्द्रप्रभदेवर कय्यलु हानचगेरेय मादय्यन मग सम्भुदेवनु सङ्गिसेट्टियर मग बोम्मण्न अग्गप्पसेट्टियर मक्कल दोरय चवुडय्यनवरु श्रीगोम्मटदेवर अमृतपडिगे मत्तियकेरेय नट्टकल्ल सीमामादेयोलगाद गद्दे सुत्तालयद चतुर्विंशतितीर्थकर अमृतपडिगे कोट्ट मोदलेरिय गहे सलगे वोन्दु-सहित सर्वबाधापरिहारवागि धारापूर्वकं माडिकोण्डु प्राचन्द्रावतारं बरं सल्वन्तागि कोट्ट दत्ति । मङ्गलमहा श्री श्री श्री ॥
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