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________________ १८८ . विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख [चेन्निसेहि के पुत्र व चन्द्रकीति भट्टारक देव के शिष्य कल्लय्य ने कम से कम ६ पुष्प मालाएँ नित्य चढ़ाये जाने के हेतु उक्त तिथि को उक्त दान दिया।] [नोट-लेख में भाव संवत्सर का उल्लेख है शक सं० ११६७ भाव संवत्सर था।] ८४ (२४४) उपर्युक्त लेख के नीचे ( सम्भवतः शक सं० ११६७ ) स्वस्ति श्रीभावसं बत्सरद पुष्य सुद्धबि () श्रीगोम्मददेवर नित्याभिषेकके श्रीप्रभाचन्द्रभट्टारकदेवर गुड्डु बारकनूर मेधाविसेट्टिगे परोक्षविनेयक्के अक्षयभण्डारक्के कोट्ट गद्याण नाल्कु यहोनिङ्ग अमृतपडिगे प्राचन्द्राक नित्यपाडि ३ य भान हाल नउसुवदु यि-धर्मव माणिक-नकरङ्गलुं एलयिगलुं पारैवरु मङ्गलमहा श्री श्री ।। [प्रभाचन्द्र भट्टारक देव के शिष्य बारकनुर के मेधावि सेट्टि की स्मृति में गोम्मट देव के अभिषेकार्थ ३ 'मान' दुग्ध प्रति दिवस देने के लिए उक्त तिथि को ४ ‘गद्याण' का दान दिया गया।] [ नोट-लेख में भाव संवत्सर का उल्लेख होने से समय उपर्युक्त।] ८५ ( २४५) उपर्युक्त लेख के नीचे ( लगभग शक सं० ११६७ ) हलसूर सोयिसेटिय मग केतिसेटियरु गोम्मट-देवरिगे Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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