________________
१८७
विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख
८२ ( २४२) उपयुक्त लेख के नीचे
( लगभग शक सं० ११००) स्वस्ति श्री बेलुगुलतीर्थद गुमिसेट्टिय दसैय बिकैवेय केतय्य कोणन मरिसेट्टिय मग लखण्न लोकेयसहणिय मगलु सोमौवे मेलमेलद समस्तनखरङ्गलु गोम्मटदेवर हुविन पडगे गङ्गसमुद्रद हिन्दे गदे स १ आगोम्मटपुरद भूमियोलगे
आन्दुहोन्न बेदले गुलयकेय्य समुदायङ्गल कय्यलु मारुगोण्डु मा (म) लेगारगे प्राचन्द्रावतारं बरं सलुवन्तागि बरदुकोदृशासन ॥
[बेल्गुल के गुमिसेष्टि श्रादि समस्त व्यापारियों ने गङ्गसमुद्र और गोम्मटपुर की कुछ भूमि खरीद कर उसे गोम्मटदेव की पूजा के निमित्त पुष्प देने के लिए एक माली को सदा के लिए प्रदान कर दी।]
८३ ( २४३) उसी पाषाण की दूसरी बाजू पर
( सम्भवतः शक सं० ११६७ ) स्वस्ति श्रीभावसंवत्सरद भाद्रपद शुक्रवारदन्दु श्री गोम्मटदेवरिगेवु तीर्थकरिगेवु इविन पडिगे चनिसेट्टिय मग चन्द्रकीत्ति भट्टारकदेवर गुड्ड कल्लय्यनु अक्षयभण्डारवागि कोट्ट ग १ प २१ यि-मरियादेयलु कुन्ददे ६ बासिग-हुव्वनिकुवरु मङ्गलमहा श्री श्री ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org