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श्रवणबेलगोल के स्मारक ओर बाण चलाया था जिससे गोम्मटेश्वर की विशालमूर्ति प्रकट हुई थी। शिला पर कई जैन गुरुओं के चित्र हैं जिनके नाम भी अङ्कित हैं।
चन्द्रगिरि पर्वत पर के अधिकांश प्राचीनतम शिलालेख या तो पार्श्वनाथ बस्ति के दक्षिण की शिला पर उत्कीर्ण हैं या उस शिला पर जो शासन बस्ति और चामुण्डराय बस्ति के सन्मुख है।
विन्ध्यगिरि यह पर्वत दोडुबेट अर्थात् बड़ी पहाड़ी के नाम से भी प्रख्यात है। यह समुद्रतल से ३,३४७ फुट और नीचे के मैदान से लगभग ४७० फुट ऊँचा है। कभी-कभी इन्द्रगिरि नाम से भी इस पर्वत का सम्बोधन किया जाता है। पर्वत के शिखर पर पहुँचने के लिये नीचे से लगाकर कोई ५०० सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। ऊपर समतल चौक है जो एक छोटे घेरे से घिरा हुआ है। इस घेरे में बीच-बीच में तलघर हैं जिनमें जिन-प्रतिबिम्ब विराजमान हैं। इस घेरे के चारों ओर कुछ दूरी पर एक भारी दीवाल है जो कहीं-कहीं प्राकृतिक शिलाओं से बनी हुई है। चौक के ठीक बीचो-बीच गोम्मटेश्वर की वह विशाल खड्डासन मूत्ति है, जो अपनी दिव्यता से उस समस्त भूभाग को अलङ्कत और पवित्र कर रही है।
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