SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 368
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख १७६ नित्यानेगे २० बासिग हूविङ्ग श्रीमन्महामण्डलाचार्यरु चन्द्रप्रभदेवर कैयलु मारुगोण्डु गङ्गसमुद्रदलु गद्दे स १ बेदलु के २०० नूरनुं कोण्डु कोट्ट दत्ति मङ्गलमहाश्री । [ उक्त तिथि को महापसायित विजयण्ण के दामाद चिक्क मदुकण्ण ने गङ्गसमुद्र की कुछ भूमि महामण्डलाचार्य चन्द्रप्रभदेव से खरीदकर गोम्मटदेव की प्रतिदिन की पूजन के हेतु बीस पुष्प मालाओं के लिए अर्पण की। [नोट-लेख में नल संवत्सर का उल्लेख है। शक सं० 111 नल था] ८८ (२३८) पूर्वोक्त लेख के नीचे __ ( संभवतः शक सं० ११२० ) कालयुक्तिसंवत्सरद कातिक सु १ प्रा श्रीगोम्म टदेवर यर्चनेगे हुविन पडिगे श्रीमन्महामण्डलाचार्यरु हिरिय नयकीर्तिदेवर शिष्यरु चन्द्रप्रभदेवर कयलु यगलियद कबि सेट्टिय सोमेयनु गद्दे पडवलगेरेय गहे को १० गङ्गसमुद्रदल्लि कोम्म तगलि को १० आबदलु गुलेय केयमेगे गद्याण ओन्दुहान बेदलु प्रकलुन सीमे। [उक्त तिथि को कविसंट्टि के (पुत्र) सोमेय ने उक्त भूमि का दान गोम्मटदेव की पुष्प-पूजन के हेतु हिरियनयकीर्ति देव के शिष्य महामण्डलाचार्य चन्द्रप्रभदेव को कर दिया ।] [नोट-लेख में कालयुक्त संवत्सर का उल्लेख है। शक सं. ११२० कालयुक्त था।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy