SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७८ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख ८० (२३६ ) उसी पाषाण के पूर्व मुख पर ( लगभग शक सं० ११०७ ) श्रीबस विसेट्टियर तीर्थकर अष्टविधानेगे मेासलेय नकर ate निबन्धयागि चवुण्डेय जकण्ण किरिय-चवण्डेय प २ महदेवसेट्टि कम्बिसेट्टि प १ उयमसेट्टि पारिस सेट्टि प १ बोकिसेट्टि बूकिसेट्टि प १ माचिसेट्टि हो निसेट्टि सुग्गि सेट्टि प १ सूकिसेट्टि प १ रामसेट्टि हा बिसेट्टि (१) १ मश्विसेट्टि बस विसेट्टि ११ मल्लिसेट्टि गुडिसेट्टि चिक्कमल्लिसेट्टि (प) २ मसवि सेट्टि माचिसेट्टि अम्माण्डुिसेट्टि प २ अलियमारिसेट्टि मुद्दिसेट्टि प २ करिकिसेट्टि चिकमादि प २ करिय बम्मिसेट्टि मारिसेट्टि प १ मलिसेट्टि बिसेट्टि कालिसेट्टि प २ मणिगार माचिसेट्टि सेट्टिया प १ तेरखिय चैाण्डेय हेगडे वसवण्ण चन्देय रामेय हुल्लेय जकण प २ मालगौण्ड सेट्टियण माचय मारेय चिकण गोय प १ मादि-गण्ड गौण्डेय माचेय बम्मेय हान्नेय जगण्ड प १ [ तात्पर्य पूर्वोक्तानुसार ही है ] ८८ (२३७ ) पूर्वोक्त लेख के नीचे ( संभवतः शक सं० १११८ ) नल संवत्सरद उत्तरायण - सङ्करान्तियलु श्रीमन्महापसायितं विजयण्णनवरलिय चिकमदुकण्ण श्रीगोम्मटदेवर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy