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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख
नहीं आता । यदि बड़ी भी हुई और सौन्दर्य भी हुआ तो उसमें दैवी तीनों के मिश्रण से
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प्रभाव का प्रभाव हो सकता है । पर यहाँ इन गोम्मटेश्वर की छटा पूर्व हो गई है।' कवि ने एक दैवी घटना का उल्लेख किया है कि एक समय सारे दिन भगवान् की मूर्त्ति पर आकाश से 'नमेरु' पुष्पों की वर्षा हुई जिसे सभी ने देखा । कभी कोई पक्षी मूर्त्ति के ऊपर होकर नहीं उड़ता । भगवान् की भुजाओं के अधोभाग से नित्य सुगन्ध और केशर के समान रक्त ज्योति की श्राभा निकलती रहती है ।
बाहुवलि स्वामी ने किस प्रकार राज्य को त्याग कठिन तपस्या स्वीकार की, कैसा घोर तप किया, कर्म शत्रुओं को कैसा दमन किया आदि विषयों का वर्णन बड़ा ही चित्तग्राही है ।
लेख की कविता बड़े ऊँचे दर्जे की है । यह कन्नड़ कविराज बोपण पण्डित श्रपर नाम 'सुजनोत्तंस' की रचना है । इसे उन्होंने नयकीर्ति के शिष्य बालचन्द्र मुनि के शिष्य कवडमय्य देवन के श्राग्रह से रचा । ]
८६ ( २३५ )
उसी पाषाण के पश्चिम मुख पर
( लगभग शक सं० ११०७ )
स्वस्ति श्री बेलुगुलवीर्तद गोम्मटदेवर सुत्तालयदेोलु वडव्यवहारि मेासलेय बसविसेट्टियरु तावु माडिसिद चतुर्व्विसतितीर्थकर अष्टविधार्चनेगे मासलेय नकरङ्गलु वरिस निबन्धियागि कोडुव पडि नेमिसेट्टि बस विसेट्टि प ४ गङ्गर महदेव चिकमादि प २ दम्मिसेट्टि प ४ बिट्टिसेट्टि बीचिसेट्टि एलगिसेट्टि
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