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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख द्याजितवृजिनं सुकवि समाजनुत विशदकीति सुजनोत्तंसं ॥ ३०॥ वरसैद्धान्तिक-चक्रश्वरनयकीर्त्तिव्रतीन्द्रशिष्यं निजचित्परिणतनध्यात्मकला
धरनुज्वलकीति बालचन्द्रमुनीन्द्रं ।। ३१ ॥ तन्मुनिनियोगदि ॥
पोडविगे सन्द गोम्मटजिनेन्द्रगुणस्तवशासनक्के कनडगविबप्पनेन्देनिप बाप्पणपण्डितनोल्दु पेल्दिवं । कडयिसिदं बलं कवडमय्यन देवणनल्तियिन्दे बागडेगेय रुद्रनादरदे माडिसिदं विलसत्प्रतिष्ठेयं ॥ ३२ ॥ [ इस लेख में बाहुवलि गोम्मटेश्वर की स्तुति है। बाहुवलि पुरुदेव के पुत्र तथा भरत के लघुभ्राता थे। इन्होंने भरत को युद्ध में परास्त कर दिया। किन्तु संसार से विरक्त हो राज्य भरत के लिये ही छोड़ उन्होंने जिन-दीक्षा धारण कर ली। भरत ने पोदनपुर के समीप १२५ धनुष । प्रमाण बाहुबलि की मूर्ति प्रतिष्ठित कराई। कुछ काल बीतने पर मूर्ति के श्रासपास की भूमि कुक्कुट सपो से व्याप्त और बीहड़ वन से आच्छादित होकर दुर्गम्य हो गई। रामचल्लनृप के मन्त्री चामुण्डराय को बाहुवति के दर्शन की अभिलाषा हुई पर यात्रा के हेतु जब वे तैयार हुए तब उनके गुरु ने उनसे कहा कि वह स्थान बहुत दूर और अगम्य है। इस पर चामुण्डराय ने स्वयं वैसी मूर्ति की प्रतिष्ठा कराने का विचार किया और उन्होंने वैसा कर डाला।
लेख में चामुण्डराय-द्वारा स्थापित गोम्मटेश्वर का बड़ा ही मनोहर वर्णन है। 'जब मूर्ति बहुत बड़ी होती है तब उसमें सौन्दर्य प्रायः
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