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विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख १६७ सुगुणियु कबालेग्रामव
जगदेरेयनु कृष्णराजशेखर नित्त ॥४॥ इन्ती बेल्गुलधर्मवु
अन्तरिसदे चन्द्रसूर्य्यरुष्लन्नेवरं ।। सन्तसदिन्देम्मय भू
कान्तरु रक्षिसलि धर्मवृद्धिय बेलेय ॥५॥ यी धर्ममं परिपालिसिदवर धर्मार्थकाममोक्षङ्गलं परम्परेयिं
पडेयुवर॥ वृत्त ॥ प्रियदिन्दी जिनधर्ममं नडेयि पर्गायुं महाश्रीयु
मक्केयिदं कायद नीचपापिगे कुरुक्षेत्रोवियोल बाणराशियोलेल्कोटि मुनीन्द्ररं कपिलेयं वेदाढ्यरं कोन्दुदो.
न्दयसं सार्गुमिदेन्दु कृष्णनृपशैलाक्षारगल नेमिसल ॥ इतिमङ्गलं भवतु ॥ श्री श्री श्री !!
[मैसूर-नरेश कृष्णराज प्रोडेयर ने गोम्मटेश्वर भगवान् के दर्शन किये और हर्ष से पुलकित होकर बेल्गोल में जैन धर्म के प्रभावानार्थ सदा के लिए उक्त ग्रामों का दान किया। इन ग्रामों में बेल्गुल
भी है ]
[नोट-लेख में शक सं० १६२१ शोभकृत् का उल्लेख है। पर शक १६२१ न तो शोभकृत् ही था और न उस समय कृष्णाराज प्रोडे. यर का ही राज्य था। लेख का ठीक समय शक सं० १६४६ है जो शोभकृत् था और जब कृष्णराज प्रोडेयर का राज्य था।]
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