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________________ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख जीयात् त्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ १ ॥ स्वस्ति समस्तभुवनाश्रयं श्रोपृथ्वी-वल्लभ-महाराजाधिराजपरमेश्वरं द्वारावतीपुरवराधीश्वरं यादवकुलाम्बरामणि सर्वज्ञचूडामणि मगरराज्यनिर्मूलनं चालराज्य प्रतिष्ठाचार्य श्रीमत्प्रतापचक्रवत्ति होयसल-श्रीवीरनारसिंहदेवरसरु पृथ्वीराज्यं गेय्युत्तिरलु तत्पादपद्मोपजीवियुं श्रीमन्नयकीति-सिद्धान्तचक्रवत्ति गल शिष्यरु श्रीमदध्यात्मबालचन्द्रदेवर गुडुं स्वस्ति समस्तगुणसम्पन्ननुं जिनगन्धोदक-पवित्रीकृतोत्तमाङ्गनुं सद्धर्मकथाप्रसङ्गनुं चतुर्विधदानविनोदनुमप्प पदुमसेट्टिय मग गोम्मटसेट्टि खरसंवत्सरद पुष्य शुद्ध उत्तरायण-सङ्क्रान्ति पाडिदिव बृहवारदन्दु श्रीगोम्मटदेवर चब्बीसतीर्थकर अष्टविधार्चनेगे अक्षयभण्डारवागि कोट्ट गद्याण ।। १२ ।। [ होयसल नरेश नारसिंह के राज्य में पदुमसेट्टि के पुत्र व अध्यात्मि बालचन्द्र देव के शिष्य गोम्मट सेट्टि ने गोम्मटेश्वर की पूजार्चन के लिए १२ 'गद्याण' का दान दिया।] [नोट-दान 'खर' संवत्सर की उक्त तिथि को दिया गया था। शक सं० १५३ खर संवत्सर था।] ८२ ( २५३) ब्रह्मदेव मण्डप में एक स्तम्भ पर (शक सं० १३४४) ( दक्षिण मुख ) श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलान्छनं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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