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________________ विन्ध्यगिरि पर्वत पर के शिलालेख १५६ ७८ ( १८३) उपयुक्त लेख के नीचे जहाँ से मूर्ति के अभिषेक के लिए व्यवहार में लाया हुआ जल बाहर निकलता है ( लगभग शक सं० ११२२ ) श्रीललित सरोवर ८० ( १७८) दक्षिण हस्त की ओर बमीठे पर (लगभग शक सं० १०८०) - श्रीमन्महामण्डलेश्वर प्रतापहोयसल नारसिहदेवर कैयलु महाप्रधान हिरियभण्डारि हुल्लमय्य गोम्मटदेवर पारिश्वदेवर चतुर्विशतितीर्थकर अष्टविधार्चनंग रिषियराहारदानक सवणेरं बिडिसि कोट्ट दत्ति । [महाप्रधान हुल्लमय्य ने अपने स्वामी होयसल नरेश नारसिंह देव से सवणेरु ( नामक ग्राम पारिनाषक में ) पाकर उसे गोम्मट स्वामी की अष्टविध पूजन और ऋषि मुनि आदि के आहार के हेतु अर्पण कर दिया ] ८१ ( १८६) तीर्थकर सुत्तालय में ( सम्भवतः शक सं० ११५३ ) ओमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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