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________________ १५४ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख ७२ (१६७) भद्रबाहु गुफा के बाहर पश्चिम की ओर चट्टान पर ( शक सं० १७३१ ) शालिवाहन शकाब्दाः १७३१ नेय शुक्लनामसंवत्सरद भाद्रपद व ४ बुधवारदनि । कुन्दकुन्दान्य (न्वय) देसि गणद श्री चारु । शिष्यराद अजितकी र्त्ति - देवरु अवर शिष्यरु शान्तिकीर्त्ति देवर शिष्यराद अजितकीर्त्तिदेवरु मासेोपवासवं सम्पूर्ण माडिई गवियल्लि देवगतरादरु | पण्डितदेव ) के शिष्य श्रजितकीर्ति [ कुन्दकुन्दान्वय देशीगण के चारु (कीर्ति अजितकीतिदेव के शिष्य शान्तकीर्ति देव के शिष्य देव ने एक मास के उपवास के पश्चात् शक सं० १७३१ भाद्रपद बदि ४ बुधवार को स्वर्गगति प्राप्त की । ] ७३ (१७०) भद्रबाहु गुफा के मार्ग पर चरणचिह्न के पास चट्टान प ( सम्भवतः शक सं० ११३८ ) स्वस्ति श्री ईश्वर संवत्सरद मलयाल कादयु-सङ्करनु इल्लिई एच गय दडवण हुणिसेय मूरुगुण्डिगे [ इस स्थान पर खड़े होकर 'मलयाल कोदयु सङ्कर' ने श्राई भूमि के पश्चिम की ओर इमली के वृक्ष के समीप की तीन शिलान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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