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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख १५३ दावणन्दिविद्य-देवलं भानुकीर्तिसिद्धान्तदेवलं श्री अध्यामिबालचन्द्रदेवरु ।।
परमागमवारिधि (हिमकिर)णं राद्धान्तचक्रि नयकीर्त्तियमीश्वरशिष्यन......लचित् परिणतनध्यात्मि बा(लच)न्द्र मुनीन्द्रं ।। १ ।। बालचं...... [ यह लेख अधूरा ही पढ़ा गया है। हन (सोगे) शाखा के गुणचन्द्र सिद्धान्तदेव के प्रमुख शिष्य नयकीर्ति सिद्धान्त चक्रवर्ति के दाम नन्दि त्रैविद्य देव, भानुकीति सिद्धान्तदेव और अध्यात्मि बालचन्द्र ये तीन शिष्य हुए। बालचन्द्र की प्रशंसा का जो पद्य यहाँ है वह उनकी प्राभृतत्रय की टीका के अन्त में भी पाया जाता है। देखो शिलालेख नं १ ० ( २४० ) पद्य २२]
__७१ (१६६) भद्रबाहु गुफा के भीतर पश्चिम की ओर
चट्टान पर* (नागरी अक्षरों में)
( लगभग शक सं० १०३२) श्रीभद्रबाहु स्वामिय पादमं जिनचन्द्र प्रणमतां । * यह लेख अब नहीं मिलता ।
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