________________
१५२ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख (द्वितीय मुख )
....... 'भद्रमप्प त्रिलो..... "वरविहितपूर्त नित्यकीर्ति.चित्य-समुचितचरितो य...र-धृत...धुविनू......यित्वाहं भुजबिम्बचितमणि .........कर त्वं चिरादिमु......सम... ......गतिभिस्स......क्षत्रियरुद्ध-श्रीकवि......नध...... श्रीवहं... ( तृतीय मुख) ___ ......राना बभा......चित्रतनूभृताम......यतेतरा...। सकल......वन्ध पादारविन्दं स...ममूर्ति सर्वसत्वा...बकदुरित-राशिभव्यद......नुविजित - मकरकेतु.........र्त्तिव्र - तीन्द्रं । भानो......सुविक...चक्रा......रो तत्पद् भव......
[यह लेख बहुत टूटा हुआ है। इसमें बालचन्द्र मुनि की कीति वर्णित रही है। द्वितीय पद्य पम्परामायण (श्राश्वास ! पद्य ८) में भी पाया जाता है।
७० (१५५) ब्रह्मदेव मन्दिर के निकट पड़े हुए एक
टूटे पाषाण पर
(लगभग शक सं० १०६२) ......दा...न्वयद हन...य बलिय श्रीगुणचन्द्रसिद्धान्तदेवरप्रशिष्यरु श्रीनयकीर्तिसिद्धान्त-चक्रवर्तिगल शिष्यरु श्री
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org