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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख १५१ क्रमशः तुरवम्मरस और सुग्गब्बे थे। इसी साध्वी स्त्री ने अपने पति की यह निषद्या निर्माण कराई।]
[नोट-अय्यावले सम्भवत: बम्बई प्रान्त के कलादि जिलान्तर्गत अाधुनिक ‘ऐहोले' का ही प्राचीन नाम है। लेख में शक १०१६ सौम्य संवत्सर का उल्लेख है। पर ज्योतिष-गणना के अनुसार शक १०५६ पिङ्गल संवत्सर था और सौम्य संवत्सर उससे आठ वर्ष पूर्व शक सं० १०११ में था। अतएव लेख का ठीक समय शक सं०१०११ ही प्रतीत होता है ]
६८ (१५८) काचिन दाणे के प्रवेशद्वार के निकट पड़े हुए
एक टूटे पाषाण पर
( लगभग शक सं० १०६२) (प्रथम मुख)
.........'व्यावृत्तविच्छित्तये । ...क्र...कलिकल्मषत्यनुदिनं श्रीबाल चन्द्रमुनि
पश्याम श्रुत-रत्न-रोहणधरं धन्यास्तु नान्ये वयं ॥१॥ प्रचुर-कलान्वितरकुटिलरचञ्चलसुद्द-पक्ष-वृत्तदेोषापचय-प्रकाशरेनेबालचन्द्र देवप्रभावमेनच्चरिये ।।२।। श्री बालचन्द्र..............
* यह पाषाण अब नहीं मिलता।
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