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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख ६८ (१५८) काञ्चिन दाणे के एक स्तम्भ पर (शक सं० १०५६) (उत्तर मुख) श्रीमत्-परम-गम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ १ ॥ स्वस्ति समस्तगुणसम्पन्नरप्प श्रीमत् त्रिभुवनमल्ल चलदङ्कराव हायसल-सेट्टियरु अय्यावलेय युण्डिगेय दम्मिसेट्टिय मगं मल्लि -सेट्टिगे चलदकराव-होयसलसेट्टिय एन्दु पेसरुकोट्टरिन्तु सकवर्ष १०५८ सौम्यसंवत्सरद माघ-मासद शुक्लपक्षद सङ्क,मणदन्दु तन्नवसानमनरिदु तन्न बन्धुगलं बिडिसि समचित्तदोलु मुडिपि स्वर्गस्थनादं ॥ (पश्चिम मुख) प्रातन सति एन्तप्पलेन्दडे ॥ तुरखम्मरसग सुग्गवेग सुपुत्रि स्वस्ति श्रोजिन-गन्धोदकपवित्री - कृतोत्तमाङ्गयुरुपाहाराभयभैषज्यशास्त्रदानविनोदेयरप्प चट्टिकब्बे तन्न पुरुष चलदकराव होयसल सेटिगं वनगं तन्न मग बूचणङ्ग परोक्ष-विनेयमागि माडिसिद निसिधिगे ॥ [त्रिभुवनमल्ल चलदङ्करावहोयसलसेट्टि ने दम्मिसेटि के पुत्र मल्लिसेट्टि को चलदङ्करावहोयसलसेट्टि की उपाधि प्रदान की । मल्लिसेट्टि 'अय्यावले' के एक राज्यकर्मचारी (युण्डिगेय ) थे। इनकी पत्नी जैनधर्म-परायणा चहिकब्बे थी जिसके पिता और माता के नाम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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