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चन्द्रगिरि रह गये हैं। स्तम्भ के चारों ओर एक लेख है (नं. ३८) (५६) जो गङ्गनरेश मारसिंह द्वितीय की मृत्यु का स्मारक है। इस राजा की मृत्यु सन् ६७४ ईस्वी में हुई थी। अतः यह स्तम्भ इससे पहले का सिद्ध होता है।
१५ महानवमी मण्डप-कत्तले बस्ति के गर्भगृह के दक्षिण की ओर दो सुन्दर पूर्व-मुख चतुस्तम्भ मण्डप बने हुए हैं। दोनों के मध्य में एक एक लेखयुक्त स्तम्भ है। उत्तर की ओर के मण्डप के स्तम्भ की बनावट बहुत सुन्दर है। उसका गुम्मटाकार शिखर बहुत ही दर्शनीय है। उस पर के लेख नं० ४२ (६६) में नयकोत्ति प्राचार्य के समाधि-मरण का संवाद है जो सन् ११७६ में हुआ। यह स्तम्भ उनके एक श्रावक शिष्य नागदेव मन्त्री ने स्थापित कराया था। ऐसे ही अन्य अनेक मण्डप इस पर्वत पर विद्यमान हैं जिनमें लेख-युक्त स्तम्भ प्रतिष्ठित हैं। एक चामुण्डराय बस्ति के दक्षिण की ओर, एक एरडुकट्टे बस्ति से पूर्व की ओर और दो तेरिन बस्ति से दक्षिण की ओर पाये जाते हैं।
१६ भरतेश्वर-महानवमी मण्डप से पश्चिम की ओर एक इमारत है जो अब रसोईघर के काम में आती है। इस इमारत के समीप एक नव फुट ऊँची पश्चिममुख मूर्ति है जो बाहुबलि के भ्राता भरतेश्वर की बतलाई जाती है। मूर्ति एक भारी चट्टान में घुटनों तक खोदी जाकर अपूर्ण छोड़ दी गई है। इस मूत्ति से थोड़ी दूर पर जो शिलालेख नं० २५ ( ६१ ) है
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