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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख १४७ शान्तला शान्ति- जैनेन्द्र- प्रतिबिम्बमकारयत् || १ || ( सिंहपीठ पर ) उक्तौ वक्त-गुणं दृशोस्तरलतां सद्विभ्रमं भ्रूयुगं काठिण्यं कुचयोनितम्ब फलके धत्से ऽतिमात्र- क्रमम् । दोषानेव गुणीकरोषि सुभगे सौभाग्य-भाग्यं तव व्यक्तं शान्तल- देवि वक्तुमवनौ शक्नोति को वा कविः ||२|| राजते राज-सिद्दीव पार्श्वे विष्णु महीभृतः । विख्याता शान्तलाख्या सा जिनागारमकारयत् ||३|| [ नोट- गन्धवारण वस्ति का निर्माण शान्तल देवी ने शक सं० १०४४ विरोधिकृत् संवत्सर में व उससे कुछ पूर्व कराया था । देखो लेख नं० ५३ (१४३ ) ] ६३ (१२० ) एरडु कट्टे वस्ति आदीश्वर की मूर्त्ति के सिंहपीठ पर ( लगभग शक सं० १०४० ) शुभचन्द्र- मुनीन्द्रस्य सिद्धान्ते सिद्ध-नन्दिनः । पद-पद्म-युगे लक्ष्मीर्लक्ष्मीरिव विराजते || १ || या सीता पतिदेवताव्रतविधौ क्षान्तौ क्षितिर्य्या पुनय वाचा वचने जिनाच्चनविधौ या चेलिनी केवलम् कार नीतिवधू रणे जय-वधूर्या गङ्गसेनापतेः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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