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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख नुव गदल बगियुरल्लि सत्तल...'वेत्त'...'यब्बे सायलेन्दु पेण्डतिये....'वोत्तनलोगले पलाँतोल गिदरायद चल मसल बलगि गन्दिनिप्पण्डतियिन् ।
[यह भी एक वीरगल है जिसमें पराक्रमी और प्रसिद्ध बायिक और जावय्ये की पुत्री 'सावियब्बे' का परिचय है। सावियब्बे का पति 'धोर' का पुत्र 'लोक विद्याधर' था। यह स्त्री रेवती, देवकी, सीता, अरुन्धती श्रादि सदृश रूपवती, पतिव्रता और धर्मप्रिया थी। वह पक्की श्राविका थी। जिन भगवान् में उसकी शासन देवता के सदृश भक्ति थी। उसने 'बगियुर' नामक स्थान पर अपने प्राण विसर्जित किये]
[नोट-लेख का अन्तिम भाग जिसमें इस वीराङ्गना के प्राणत्याग का वर्णन है, बहुत घिस गया है इससे स्पष्ट नहीं है। ऐसा कुछ विदित होता है कि यह सती स्त्री अपने पति के साथ युद्ध में गई थी और वहाँ लड़ते-लड़ते इसने वीरगति पाई। लेख के ऊपर जो चित्र खुदा है उसमें यह स्त्री घोड़े पर सवार हुई हाथ में तलवार लिए हुए एक हाथी पर सवार वीर का सामना करती हुई चित्रित की गई है। हाथी पर चढ़ा हुश्रा पुरुष इस पर वार करता हुश्रा दिखाया गया है। *सायिब्बे' सावियब्बे का संक्षेप रूप है]
६२ (१३१) गन्धवारण वस्ति में शान्तीश्वर की मूर्ति के
पादपीठ पर (लगभग शक सं० १०४४) प्रभाचन्द्र-मुनीन्द्रस्य पद-पङ्कजषट पदा ।
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