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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख बेदरुविनं तेर ल्चि पलरुं तुलिलालगलनिक्कि तन्न बीरद... लदेल्लगेयं परबलं पागलल्बडिकं... मागि बिल्ददटिनलुर्केयं मेरेदु सावुदु बोयिगनन्तिलाग्र दोलू || ३ || नट्ट-सरलगलिन्दिदक (कन्वयको ) चिंकिडि के दुबेडिरोल्लिट्ट निसान्तहेतुगलिनादमगुर्व्विसिबट्टु बीलुवाताट्टने नान्दु बील्वेडेये ( लू नय्य) गोण्डु विमान म... लं मुट्टमित्तरित गल बोयिगनं दिविजेन्द्र कान्तेय ॥४॥ १४४ [ यह एक वीरगल है । इसमें उल्लेख है कि गङ्गवज्र ( नरेश ) अपर नाम रक्कमणि के बोयिग नाम के एक वीर योद्धा ने 'वहेग' और 'कोय गङ्ग' के विरुद्ध युद्ध करते हुए अपने प्राण विसर्जित किये । युद्ध में इसने ऐसी वीरता दिखाई कि जिसकी प्रशंसा उसके विपक्षियों ने भी की ] ६१ (१३८ ) उसी स्थान के द्वितीय वीरगल पर ( लगभग शक सं० ८७२ ) श्री युवतिगे निज - विजय श्री -युवतिये सवतियेनिसे रण - मूर्ख नृपानायद लायद मेय्-गलि बायकनेम्ब नेगल्तेयं प्रकटिसिदन् ॥ १ ॥ श्री- दयितन बायिकन म ना-दयितेगे जभदालेसेद जाबय्यगे ताम् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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