SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख नहीं कहे जा सक्त ? लेख में परम ग्राम की सीमा दी हुई है जिससे विदित होता है कि यह ग्राम श्रवण वेल्गोल के समीप ही ईशान दिशा में था । उक्त दान शक संवत् १०३६, फाल्गुण सुदि ५ सोमवार को दिया गया था। गङ्गराज कुन्दकुन्दान्वय देशीगण पुस्तक गच्छ के कुक्कुटासन मलधारिदेव के शिष्य शुभचन्द्र सिद्धान्त देव के शिष्य थे। दान की रक्षा के हेतु लेख में कहा गया है कि जो कोई इस दान-द्रव्य में हस्तक्षेप करेगा वह कुरुक्षेत्र व बनारस में सात करोड़ ऋषियों, कपिल गौओं व वेदज्ञ पण्डितों के घात का पापी होगा । ६० (१३८) बाहुबलि बस्ति के पूर्व की ओर प्रथम वीरगल पर ( लगभग शक सं० ८६२) श्रीगाश्रयवेने तेजकागरवेने नेगल्द गङ्गवज्रन लेङ्क ब्बेोगायचनेम्बरवरी ल्बोगेय (बोयिग ) मार्पडेगारण्टनण्नन बण्ट ॥ १ ॥ रकसमणिय काणेयगङ्गन कालेगोल्तन्न सावं निश्चय्सि कालेगकिडे रक्कसमणिय कलिपि तन्त्र बलमुं मार्बलमुतन्नने पोगले। ओडने कालग बयिसिद घोल यिलपरपिङ्ग मार्बलं बिडे कडिकरदा नूङ्कि किडे तन्न बलं पेरबागदल्लि बन्दडिगेडदन्दे वजियोले पायिसि मुलमेलमं पडल वडिसि पोगल्तेयं पडेदु णान्तुदु बोयिगनान्तानिचट ॥२॥ अदिरि...लिक वद्देगन काणेयगङ्गन मोत्तमेल्लमं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy