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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख ५६ (७३) शासन वस्ति के सामने एक शिला पर। (शक सं० १०३६) श्रीमत्परम-गम्भीर-स्याद्वादामोध-लाञ्छनं । जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ १॥ भद्रमस्तु जिनशासनाय सम्पद्यतां प्रतिविधान-हेतवे । अन्यवादि-मद-हस्ति-मस्तक-स्फाटनाय घटने पटीयसे ॥२॥ नमो वीतरागाय नमस्सिद्धेभ्यः॥ स्वस्ति समधिगत-पञ्च-महाशब्द-महामण्डलेश्वरं द्वारवतीपुरवराधीश्वरं यादव - कुलाम्बर-धु-मणि सम्यक्त-चूड़ामणि मलपरोलगण्डाद्यनेकनामावली-समालङ्कतरप्प श्रीमन्महामण्डलेश्वरं त्रिभुवनमल्ल तलकाडुगोण्ड भुज-बल-वीर-गणविष्णुवर्द्धन-होयसल-देवर विजयराज्यमुत्तरोत्तराभिवृद्धि-प्रवर्द्ध मानमाचन्द्रार्कतारं सलुत्तमिरे तत्पादपद्मोपजीवि ॥ वृत्त ॥ जनताधारनुदारनन्यवनितादूरं वचस्सुन्दरी धन-वृत्त-स्तन-हारनुग्र-रणधीरं मारनेनेन्दपै । जनक तानेने माकणब्बे विबुध-प्रख्यात-धर्म-प्रयु. क्त-निकामात्त-चरित्रे तायेनलिदेनेच महाधन्यनो ।। ३ ॥ कन्द ।। वित्रस्तमलं बुध-जन-मित्रं द्विजकुलपवित्रनेचं जगदोलु । पात्रं रिपु-कुल-कन्द-खनित्रं कौण्डिन्य-गोत्रनमलचरित्रं ॥४॥ मनुचरितनेचिगाङ्कन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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