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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख १३८ मनेयोलु मुनिजन समूहमु बुधजनमु। जिनपुजने जिनवन्दने । जिनमहिमेगलावकालमुसोभिसुगुं ॥ ५ ॥ उत्तम-गुण-ततिवनितावृत्तियनोलकोण्डुपेन्दु जगमेलम्कय्येत्तुविनममल-गुण-सम्पत्तिगे जगदोलगे पाचिकब्बेये नोन्तलु ॥६॥ अन्तेनिसिद् एचिराजन पाचिकब्बेय पुत्रनखिलतीर्थकरपरमदेवपरमचरिताकर्णनादीर्ण-विपुल-पुलक-परिकलित वारबाणनुवसम-समर-रस-रसिक-रिपुनृपकलापावलेप-लोप-लोलुप-कृपाणनुवाहाराभय-भैषज्य-शास्त्र-दान-विनोदनुं सकललोकशोकापनोदनुं । वृत्त ॥ वज्रवज्रभृतो हलं हलभृतश्चक्र तथा चक्रिण शक्तिश्शक्तिधरस्य गाण्डिवधनुगाण्डीवकोदण्डिनः । यस्तद्वद्वितनोति विष्णुनृपतेष्कार्य कथं मादशै गङ्गो गङ्ग-तरङ्ग-रजितयशो-राशिस्स-वर्यो भवेतु ॥ ७ ॥ इन्तेनिप श्रीमन्महाप्रधानं दण्डनायकं द्रोहघरट्टे गङ्गराज चालुक्य-चक्रवत्ति -त्रिभुवनमल्ल-पेाडिदेवन दलं पनिर्व आमन्तāरसुकण्णेगाल-बीडिनलु बिट्टिरे ।। कन्द ।। तेगे वारुवमं हारुव बगेय तनगिरुलबवरमेनुत सवङ्ग । बुगुव कटकिगरनलिरं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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