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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख लयय्वत्तुकोलगगर्देय तोण्टमुमं नाल्वत्तुगद्याणपोन्ननिकि कट्टिसि चारुगिङ्ग विलसनकट्टमुमं श्रीमद्विष्णुवर्द्धन पायसलदेवरं बेडिकोण्डु सकवर्ष सायिरद नाल्वत्तयदेनेय शोभकृत्सम्वत्सरद चैत्रशुद्धपडिवबृहस्पतिवारदन्दु तम्म गुरुगल श्रीमूलसङ्घद देशियगणद पोस्तकगच्छद श्रीमन्मेषचन्दत्रैविद्यदेवरशिष्यरप्प प्रभाचन्द्रसिद्धान्तदेवर्गे पादप्रक्षालनं माडि सर्वबाधापरिहारवागि बिट्टदत्ति । वृत्त ।। प्रियदिन्दिन्तिदनेय दे काव पुरुषग्र्गायु महाश्रीयुम---
केयिदं कायदे कायब पापिगे कुरुक्षेत्रोत्रियोल बायरासियोलेक्कोटिमुनीन्द्ररं कविलेय वेदाढ्यरं कोन्दुदो
न्दयशं सामिदेन्दु सारिदपुवी शैलाक्षरं सन्ततं ॥३॥ श्लोक ।। स्वदत्तां परदत्तां वा यो हरेति वसुन्धरां ।
। षष्टिवर्षसहस्राणि विष्टायां जायते कृमिः ॥४०॥
[यह लेख तीन भागों में विभक्त है । श्रादि से उन्नीसवें पद्य तक इसमें द्वारावती के यादव वशीय पोयसल नरेश विनयादित्य व उनके पुत्र और उत्तराधिकारी एरेयङ्ग व उनके पुत्र और उत्तराधिकारी विष्णुवर्द्धन का वर्णन है। विष्णुवद्धन बड़ा प्रतापी नरेश हुश्रा। इसने अनेक माण्डलिक राजाओं को जीतकर अपना राज्य-विस्तार बढ़ाया । इसकी पटरानी शान्तलदेवी जैनधर्मावलम्बिनी, धर्मपरायणा और प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव की शिष्या थी। इसने शक सं० १०५० चैत्र सुदि ५ सोमवार को शिवगङ्ग नामक स्थान पर शरीर त्याग किया । शान्तलदेवी के पिता का नाम मारसिङ्गय्य और माता का नाम माचिकब्बे था। इन्होंने शान्तलदेवी के पश्चात् शरीरत्याग किया।
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