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१०० चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख - लेख के दूसरे भाग में, जो पध २० से ३४ तक जाता है, शान्तल देवी की माता माचिकब्बे का बेल्गोल में श्राकर एक मास के अनशन व्रत के पश्चात् संन्यास विधि से देहत्याग करने का वर्णन है और पश्चात् उसके कुल का वर्णन है। दण्डाधीश नागवर्म और उनकी भार्या चन्दिकब्बे के पुत्र प्रतापी बलदेव दण्डनायक और उनकी भार्या बाचिकब्बे से ही माचिकब्बे की उत्पत्ति हुई थी। माचिकब्बे ने अपने गुरु प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव, वर्धमानदेव और रविचन्द्र देव की साक्षी से संन्यास ग्रहण किया था।
लेख के अन्तिम भाग में बलदेव दण्डनायक और उनके पुत्र सिङ्गिमय्य की प्रशस्ति के पश्चात् शान्तलदेवी द्वारा सवति गन्धवारण नामक जिन मन्दिर निर्माण कराये जाने और उसकी श्राजीविका श्रादि के लिये विष्णुवर्द्धन नरेश की अनुमति से कुछ भूमि का दान दिये जाने का उल्लेख है। यह दान मूलसंघ, देशिय गण, पुस्तक गच्छ के मेघचन्द्र विद्यदेव के शिष्य प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव को दिया गया था।]
. [नोट-लेख में शक सं० १०१० विरोधिकृत् कहा गया है। पर ज्योतिष गणना के अनुसार शक सं० १०१. कीलक व सं० १०५३ विरोधिकृत् सिद्ध होता है। श्रागे का लेख (५४) शक १०१० कीलक संवत्सर का ही है। दान शोभकृत् (शुभकृत्) संवत् में दिया गया था जो विरोधिकृत से आठ वर्ष पूर्व (शक सं० १०४४) में पड़ता है।]
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