________________
चन्द्रगिरि
बायें छोर पर सर्वाहयक्ष की मूर्तियाँ हैं। सभी मूर्तियाँ पद्मासन हैं। बरामदे के सम्मुख जो बहुत ही सुन्दर प्रताली ( दरवाजा ) है वह पीछे निर्मापित हुआ है । इसकी कारीगरी देखने योग्य है। घेरे के पत्थरों पर जाली का काम, जिस पर श्रुतकेवलि भद्रबाहु और मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्त के कुछ जीवन-दृश्य खुदे हुए हैं, अपूर्व कौशल का नमूना है । इसी जाली पर एक जगह 'दासेोज:' ऐसा लेख है जो इस प्रताली के बनानेवाले कारीगर का नाम प्रतीत होता है । इसी नाम के एक व्यक्ति ने लेख नं० ५० उत्कीर्ण किया है । यह लेख शक सं० २०६८ का है । यदि ये दोनों व्यक्ति एक ही हों तो यह प्रताली शक सं० २०६८ के लगभग की बनी सिद्ध होती है। उपर्युक्त लेख की लिपि भी इसी समय की ज्ञात होती है । मन्दिर के दोनों बाजुओंों के कोठों पर छोटे खुदावदार शिखर भी हैं । मध्य के कोठे के सम्मुख सभा भवन में क्षेत्रपाल की स्थापना है जिनके सिंहासन पर कुछ लेख भी है । इस मन्दिर का नाम चन्द्रगुप्त- बस्ति पड़ने का कारण यह बतलाया जाता है कि इसे स्वयं महाराज चन्द्रगुप्त मौर्य ने निर्माण कराया था । इसमें सन्देह नहीं कि इस मन्दिर की इमारत इस पर्वत के प्राचीनतम स्मारकों में से है ।
४ शान्तिनाथ बस्ति - यह छोटा सा जिनालय २४४१६ फुट लम्बा-चौड़ा है । इसकी दीवालों और छत पर अभी तक चित्रकारी के निशान हैं ।
शान्तिनाथ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org