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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख ८१ पश्चात् लेख में मेवचन्द्र के गुरुभाई बालचन्द्र मुनिराज का उल्लेख है। तत्पश्चात् शुभकीर्ति आचार्य का उल्लेख है जिनके सम्मुख वाद में बौद्ध, मीमांसकादि कोई भी नहीं ठहर सकता था। इसके पश्चात् लेख में मेधचन्द्र विद्यदेव के शिष्य प्रभाचन्द्र और वीरनन्दि का उल्लेख है। प्रभाचन्द्र श्रागम के अच्छे ज्ञाता और वीरनन्दि भारी सैद्धान्तिक थे। लेख के अन्तिम भाग में विष्णुवर्धन-नरेश की पटराज्ञी शान्तलदेवी की धर्मपरायणता का भी उल्लेख है। वे प्रभाचन्द्र की शिष्या थीं। प्रभाचन्द्रदेव का स्वर्गवास शक सं० १०६८ पासोज सुदि १० बृहस्पतिवार को हुआ। यह लेख उन्हीं का स्मारक है । ]
५१ (१४१) उसी स्थान के द्वितीय मण्डप में प्रथम स्तम्भ पर
(शक सं० १०४१) ( पूर्वमुख)
श्रीमत्परमगम्भीरस्यावादामोघलाञ्छनं ।। जीयात्रैलोक्यनाथस्य शासनं जिनशासनं ॥ १ ॥ सकल-जन-विनूतं चारु-बोध-त्रिनेत्रं सुकरकविनिवासं भारतीनृत्यरङ्ग। प्रकटितनिजकीर्त्तिदिव्यकान्तामनोज
सकलगुणगणेन्द्रं श्रीमभाचन्द्रदेव ॥ २ ॥ अवर गुडुनेन्तप्पनेन्दडे ।।
स्वस्ति समस्तभुवनजनवन्धमानभगवदर्हत्सुरभिगन्धिगन्धोदककणव्यक्तमुक्तावलीकृतोत्तंशहंस सुजनमनःकमलिनीराजहंस महाप्रचण्डदण्डनायक। शत्रुभयदायक। पतिहित
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