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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख सैद्धान्तव्यूह चूड़ामणिरनुपलचिन्तामणिर्भुजनानां योऽभूत्सौजन्यरुन्द्रश्रियमवतिमहो वीरणन्दी मुनीन्द्रः ॥५०॥ श्री प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवर गुडि विष्णुवर्द्धन भुजबल वीरगड़ बिट्टिदेवन हिरियरसि पट्टमहादेवी ॥ शान्तल - देविय सद्गुण वन्तेगे सौभाग्यभाग्यवतिगे वचश्श्री कान्तेयुमच्युत [ } कान्तेयुमेयल्ल दुलिद सतियर्दोरेये ।। ५१ ।। ...... शान्तल- देविय तायि । दानमननूनमं कः केनार्थी येण्दु को जिननं मनदोलू | ध्यानिसुतं मुडिपिद लिन् नेम्बु माचिकब्बेयोन्दुन्नतियम् ॥ ५३ ॥ सकवर्ष १०६८ नेय क्रोधन संवत्सरद् आश्विजसुद्ध-दशमी बृहवार दन्दु धनुलग्नद पूर्वाह्णद् श्रारुघलिगेयप्पागल श्रीसूलसङ्घद काण्डकुन्दान्वयद देशिगगणद पुस्तकगच्छद श्री मेघचन्द्रत्रैविद्यदेवर हिरियशिष्यरम्प श्री प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवरु स्वर्गस्तरादरु | [ इस लेख के प्रथम इकतीस पद्य शिलालेख नं० ४७ (१२७) के प्रथम बत्तीस पदों के समान ही हैं, केवल ४७ वें लेख में पद्य नं० २३ और २४ और इस लेख में पथ नं० ३० अधिक हैं । कुन्दकुन्दाचार्य से प्रारम्भ कर मेघचन्द्र व्रती तक की गुरु-परम्परा का वर्णन करने के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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