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________________ चन्द्रगिरि लेख में नहीं पाई जाती। यहाँ के मानस्तम्भ के विषय में अनन्त कवि-कृत कनाड़ी भाषा के 'बेल्गोलद गोम्मटेश्वरचरित' नामक काव्य में कहा गया है कि उक्त मानस्तम्भ मैसूर के चिक्क देव-राज ओडेयर नामक राजा (१६७२-१७०४ ईस्वी ) के समय में पु?य नामक एक सेठ-द्वारा निर्माण कराया गया था। इसी काव्य के अनुसार मन्दिर की बाहरी दीवाल भी इसी सेठ ने बनवाई थी। यह काव्य लगभग डेढ़ सौ वर्ष पुराना है। २ कत्तले बस्ति -चन्द्रगिरि पर्वत पर यह मन्दिर सबसे भारी है। इसकी लम्बाई-चौड़ाई १२४४४० फुट है। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा है। नवरङ्ग से सटा हुआ एक मुखमण्डप ( सभा-भवन ) भी है और एक बाहरी बरामदा भी। सामने के दरवाजे के अतिरिक्त इस सारे विशाल भवन में और कोई खिड़िकियाँ व दरवाजे नहीं हैं। बाहरी ऊँची दीवाल के कारण उस एक सामने के दरवाजे से भी पूरा-पूरा प्रकाश नहीं जाने पाता। इसी से इस मन्दिर का नाम कत्तले बस्ति (अन्धकार का मन्दिर ) पड़ा है। बरामदे में पद्मावती देवी की मूर्ति है। जान पड़ता है, इसी से इस मन्दिर का नाम पद्मावतीबस्ति भी पड़ गया है। मन्दिर पर कोई शिखर नहीं है, पर मठ में इस मन्दिर का जो मान-चित्र है उसमें शिखर दिखाया गया है। इससे जान पड़ता है कि किसी समय यह मन्दिर शिखर-बद्ध रहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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