SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख व्यतीत कर इस महिला ने शक सं० १०४२, फाल्गुण वदि बृहस्पति वार को संन्यास-विधि से शरीर त्याग किया। यह महिला शुभचन्द्र सिद्धान्तदेव की शिष्या थी। ५० (१४०) गन्धवारण बस्ती के प्रथम मण्डप में एक स्तम्भ पर (शक सं० १०६८) (पूर्वमुख) भद्रं भूयाजिनेन्द्राणां शासनायाघनाशिने । कुतीर्थध्वान्तसङ्घातप्रभिन्नघनभानवे ।। १ ।। श्रीमन्नाभेयनाथाद्यमलजिनवरानीकसौधोरुवाद्धिः प्रध्वस्ताघप्रमेयप्रचयविषयकैवल्यबोधोरुवेदिः । शस्तस्यात्कारमुद्राशबलितजनतानन्दनादोरुघोषः स्थेयादाचन्द्रतारं परमसुखमहावीर्यवीचीनिकायः ॥ २ ॥ श्रीमन्मुनीन्द्रोत्तमरत्नवर्गाः श्रोगौतमाद्या: प्रभविष्णवस्ते । तत्राम्बुधौसप्तमहर्द्धियुक्तास्तत्सन्ततीनन्दिगणे बभूव ।। ३ ॥ श्रीपद्मनन्दीत्यनवद्यनामाह्याचार्यशब्दोत्तरकाण्डकुन्दः। द्वितीयमासीदभिधानमुद्यच्चरित्रसंजातसुचारणद्धिः ।। ४ ॥ अभूदुमास्वाति मुनीश्वरोऽसावाचार्यशब्दोत्तरगृद्ध पिञ्च्छः। तदन्वयेतत्सदृशोऽस्तिनान्यस्तात्कालिकाशेषपदार्थवेदी ॥५॥ श्रीगृद्धपिन्छमुनिपस्यबलाकपिञ्छः शिष्योऽजनिष्टभुवनत्रयवर्त्तिकीर्तिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy