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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख ६५ मातन मनस्सरोवरराजहंसे भव्यजनप्रसंसे गोत्र-निधाने रुक्मिणो समाने लक्ष्मीमतिदण्डनायकितियुमन्तवरिन्दमतिशयमहाविभूतियिं सुभलमदोलु प्रतिष्ठेय माडिसिदर प्रामुनीन्द्रोत्तमर ईनिसिधिगेयन् अवर तपःप्रभावमेन्तप्पुदेन्दोडे । समदोद्यन्मार-गन्ध-द्विरद-दलन १-कण्ठीरवं क्रोध-लोभद्रुम-मूलच्छेदनं दुर्द्धरविषयशिलाभेद-वज्र-प्रतापं । कमनीयं श्रोजिनेन्द्रागमजलनिधिपारं प्रभाचन्द्र-सिद्धान्तमुनीन्द्र मोहविध्वंसनकरनेसेदं धात्रियोल योगिनाथ ।। ३८ ।।
चावराज बरेद ।। मत्तिन मातवन्तिरलि जीर्ण जिनाश्रयकोटियं क्रम बेत्तिरे मुन्निनन्तिरनितूर्गलोलं नेरे माडिसुत्तम --- त्युत्तमपात्रदानदोदवं मेरेवुत्तिरे गङ्गवाडितोम्बत्तरु सासिरं कोपणमादुदु गङ्गणदण्डनाथनिं ॥ ३८ ॥ सोभेयनें कैकोण्डुदो सौभाग्यद-कणियेनिप्प लक्ष्मीमतियन्दीभुवनतलदोला हाराभयभैसज्यशास्त्र-दान-विधान ॥४०॥
[यह लेख मेघचन्द्र विद्यदेव की प्रशस्ति है। प्रथम श्लोक को छोड़ आदि के नव पद वे ही हैं जो शिलालेख नं० ४१ (६६) में भी पाये जाते हैं। उनमें कुन्दकुन्दाचार्य, उमास्वाति गृद्ध पिञ्छ, बलाक पिच्छ, गुण नन्दि, देवेन्द्र सैद्धान्तिक और कलधौतनन्दि मुनि का उल्लेख है।
१ द्विरदन-बल
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