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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख पदेदप्पं कृष्णनेम्बन्तेसेदु बिस-लसत्कन्दलीकन्दकान्त पुदिदत्ती मेघचन्द्रव्रतितिलकजगदर्तिकीर्तिप्रकाश ॥३५॥ पूजितविदग्धविबुधसमाजं त्रैविद्य-मेघचन्द्र-ब्रति सराजिसिदं विनमितमुनिराजं वृषभगणभगणताराराजं ॥३॥ सक वर्ष १०३७ नेय मन्मथसंवत्सरद मार्गसिर सुद्ध १४ बृहवारं धनुलग्नद पूर्वाह्नदारुघलिगेयप्पागलु श्रीमूलसङ्घद देसिगगणद पुस्तकगच्छद श्रोमेघचन्द्रविद्य देवतम्मवशानकालमनरिदु पल्यङ्काशनदोलिई प्रात्मभावनेयं भाविसुत्तुं देवलोकके सन्दराभावनेयेन्तप्पुदेन्दोडे ।। अनन्त-बोधात्मकमात्मतत्त्वं निधाय चेतस्यपहाय हेयं । विद्यनामा मुनिमेषचन्द्रो दिवं गताबोधनिधिविशिष्टाम् ।। अवरप्रशिष्यरशेष-पद-पदार्थ-तत्त्व-विदरु सकलशास्त्रपारावारपारगरु गुरुकुल्लसमुद्धरणरुमप्प श्री प्रभाचन्द्र-सिद्धान्तदेवतम्म गुरुगलो परोक्षविनेयं कारणमागि श्रीकब्बप्पु-तीर्थदल तम्म गुडु ॥ समधिगतपञ्चमहाशब्द महासामन्ताधिपति महाप्रचण्ड दण्डनायक वैरिभयदायकं गोत्रपवित्रं बुधजनमित्र स्वामिद्रोहगोधूमघरट्टसङ्ग्रामजत्तलट्ट विष्णुवर्द्धनभूपालहोयसलमहाराजराज्य-समुद्धरण कलिगलाभरण ओजैनधर्मामृताम्बुधि-प्रवर्द्धनसुधाकर सम्यक्तरत्नाकर श्रीमन्महाप्रधानं दण्डनायकगङ्गराजनु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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