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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख वृत्त ॥ पसरिसेकीत्तनं जननिपाचल-देवियरस्थिव मा डिसिदजिनालयक्कमोसेदात्म-मनोरमे लक्षिदेविमा-। डिसिद जिनालयकमिदुपूजनेयोजितमेन्दुकोटुस न्तोसमनजस्रमाम्पनेनेगङ्गचमूपनिदेनुदात्तनो ॥ १० ॥ अक्कर ॥ प्रादियागिप्पुंदाहत-समयके मूलसङ्घकोण्डकुन्दान्वयं बादुवेडदं बलयिपुदल्लिय देसिगगणद पुस्तकगच्छद । बोध-विभवद कुक्कुट्टासनमलधारिदेवर शिष्यरेनिप पेम्पिङ्ग, आदमेसेदिपशुभचन्द्र-सिद्धान्त-देवरगुडुंगड-चमूपति११॥ गङ्गवाडिय बस दिगलेनितालवनितुमम्तानेय्दे पोसयिसिदं गङ्गवाडिय गोम्मटदेवगर्गे सुत्तालयमनेटदे माडिसिदं । गङ्गवाडिय तिगुलरं बेङ्कोण्डु वीरगङ्गङ्ग निमिर्चिकोट्ट गङ्गराजना मुन्निन गङ्गररायङ्ग नूमडिधन्यनल्ते ।। १२ ।। [ यह लेख शिलालेख नं० ५६ ( ७३ ) के प्रथम पैंतीस पद्यों का उद्धरण मात्र है । देखो नं. ५६] ४६ ( १२६ ) एरड्ड कट्टे वस्तिके पश्चिम की ओर मण्डप में पहले स्तम्भ पर (शक सं० १०३७ ) (उत्तरमुख) भद्रमस्तु जिनशासनस्य ॥ जयतु दुरितदूरः क्षीरकुपारहारः प्रथितपृथुलकीर्तिश श्री शुभेन्द्रव्रतीशः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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