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________________ ४६ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख गण्डविमुक्तदेव मलधारि मुनीन्द्र और शुभचन्द्र देव का उल्लेख है। लेख में विष्णुवर्द्धन नरेश की भावज जवक्कणब्बे की जैन धर्म में भारी श्रद्धा का भी उल्लेख है। यह लेख प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेव के शिष्य हेग्गडे मर्दिमय्य द्वारा रचित और वद्ध मानाचारि द्वारा उत्कीण है।] ४४ (११८) उसी मण्डप में द्वितीय स्तम्भ पर . . (शक सं० १०४३) श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनं । जीयात् त्रैलोक्य नाथस्य शासनं जिनशासनं ॥१॥ भद्रमस्तु जिनशासनाय सम्पद्यतां प्रतिविधानहेतवे । अन्यवादिमदहस्तिमस्तकस्फाटनाय घटने पटीयसे ॥२॥ नमस्सिद्धेभ्यः ॥ जनताधारनुदारनन्यव नितादूरं वचस्सुन्दरी धनवृत्तस्तनहारनुग्ररणधीरं मारनेनेन्दपै । जनकं तानेने माकणब्बे विबुधप्रख्यातधर्मप्रयु क्ते निकामात्त-चरित्रे तायनलिदेनेचं महाधन्यनो ॥३॥ कन्द ॥ वित्रस्तमलं बुधजनमित्रं द्विजकुलपवित्रनेच जगदोलु । पात्रं रिपुकुलकन्दखनित्रं कौण्डिन्य गोत्रनमलचरित्र ॥४॥ वृत्त ॥ परमजिनेश्वरं तनगेदेय्वमलुर्केयिनोल्पु-वेत्त मु ल्लुरदुरितक्षयर्कनकनन्दिमुनीश्वररुत्तमोत्तम-.. Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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