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४८ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख महाराजराज्यसमुद्धरणकलिगलाभरण श्रीजैनधर्मामृताम्बुधिप्रवर्द्धन-सुधाकर-सम्यक्त-रत्नाकराद्यनेकनामावलीसमालङ्कतरप्पश्रीम न्महाप्रधानदण्डनायकगङ्गराजं तम्म गुरुगल श्रीमुलसङ्घददेसिय गणद पुस्तकगच्छद शुभचन्द्र सिद्धान्तदेवगर्गे परोक्षविनयक्के निसिधिगेय निलिसि महापूजेयं माडि महादानमं गेय्दरु॥ आमहानुभावनत्तिगे ॥ शुभचन्द्रसिद्धान्तदेवर गुड्डि ।
वरजिनपूजेयनयादरदिन्दं जक्कणब्बे माडिसुवलुस-1 चरिते गुणान्विते येन्दी धरणीतल मेचि पागलुतिर्युदु निच्चं ॥२६॥ दोरेये जकणिकब्बेगी भुवनदोल चारित्रदोल शीलदोल परमश्रीजिनपूजेयोल सकलदानाश्चर्यदोल सत्यदोल । गुरुपादाम्बुजभक्तियोल विनयदोल भव्यकलं कन्ददादरदि मन्निसुतिर्प पेम्पिनेडेयोल मत्तन्यकान्ताजनम् ॥३०॥ श्रीमत्प्रभाचन्द्र सिद्धान्तदेवर गुड्ड हेग्गडेमर्दिमयंबरेदं । बिरुदरूवारिमुखतिलकं बर्द्धमानाचारि खंडरिसिद
मङ्गल महा ॥ श्री श्री ॥ इस लेख में पोय सल महाराज गङ्गनरेश विष्णुवर्धन द्वारा उनके गुरु शुभचन्द्र देव की निषद्या निर्माण कराये जाने का उल्लेख है। शुभचन्द्र देव का स्वर्गारोहण शक सं० १०४५, श्रावण कृष्ण १० को हुश्रा था। इनके गुरु परम्परा-वर्णन में मलिधारिदेव और श्रीधरदेव के उल्लेख तक के प्रथम ग्यारह श्लोक वे ही हैं जो उपर्युक्त शिलालेख नं. ४२ (६६) के हैं। इसके पश्चात् चन्द्रकीर्ति भट्टारक, दिवाकरनन्दि,
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