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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । २६ -श-कदम्ब-स्तुत-पाद-पद्मनरुहं नाथं यदुक्षोणिपा-लक-चूड़ामणि नारसिङ्गनेनलेनोम्पुल्लनाहुल्लपं ॥२७॥
श्रीमन्महाप्रधानं सर्वाधिकारि हिरियभण्डारि अभिनवगङ्गदण्डनायक-श्रीहुल्लराज तम्म गुरुगलप्पश्रीकाण्डकुन्दान्वयद श्रीमूलसङ्घद देशियगणद पुस्तकगच्छद श्रीकाल्लापुरद श्रीरूपनारायणन बसदिय प्रतिविद्धद श्रीमत्केलङ्ग रेय प्रतापपुरवंपुनर्भरणवं माडिसि जिननाथपुरदलु कल दानशालेयं माडिसिद श्रीमन्महामण्डलाचार्यदेवकीर्तिपण्डितदेवगर्गे परोक्षविनयवागि निशिदियं माडिसिद अवर शिष्यर्लक्खणन्दि-माधवत्रिभुवनदेवमहादान-पूजाभिषेक-माडि प्रतिष्ठेयं माडिदरु
मङ्गल महा श्री श्री श्री ॥ . [ इस लेख में गौतम गणधर से लगाकर मुनिदेवकीर्ति पण्डितदेव की गुरु-परम्परा दी है।। कनकनन्दि और देवचन्द्र के भ्राता श्रुतकीति विद्य मुनि की प्रशंसा में कहा गया है कि उन्होंने देवेन्द्र सदृश विपक्षवादियों को पराजित किया और एक चमत्कारी काव्य राघव-पाण्डवीय की रचना की जो प्रादि से अन्त को व अन्त से. श्रादि को दोनों और पढ़ा जा सके ४ । प्रतापपुर की रूपनारायण बस्ती का
भूमिका देखो।
x श्रुतकीर्ति की प्रशंसा के ये दोनों छन्द नागचन्द्रकृत रामचन्द्रचरितपुराण' अपर नाम 'पम्प रामायण' के प्रथम प्राश्वास में नं० २४२५ पर भी पाये जाते हैं। इस काव्य की रचना शक सं० १०२२ के लगभग हुई है। जिन विपक्ष-सैद्धान्तिक देवेन्द्र का यहाँ उल्लेख है वेसम्भवत: 'प्रमाणनय-तत्वालेोकालङ्कार' के कर्ता वादि-प्रवर श्वेताम्बरा
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