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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । - ३० (१०५) ( लगभग शक सं० ६२२) अङ्गादिनामननेकं गुणकीति देन्तान् तुङ्गोच्चभक्तिवशदिन तारदिखिदेहम् पोङ्गोल विचित्रगिरिकूटमयंकुचेलम् । [ गुणकीत्ति ने भक्ति-सहित यहाँ देहोत्सर्ग किया।] . ३१ (१०६) ( लगभग शक सं० ६२२ ) नविलूरा श्रीसङ्घदुल्ले गुरवंनम्मोनियाचारियर् अवराशिष्यरनिन्दितार्गुणमि 'वृषभनन्दोमुनी । भवविज्जैन-सुमार्गदुल्ले नडदोन्दाराधना-योगदिन अवलं साधिसि स्वर्गलोकसुख-चित्त......माधिगल । नविलूर संघ के मौनिय श्राचार्य के शिष्य वृषभनन्दि मुनि ने समाधि-मरण किया । ३२ (११३) (लगभग शक सं० ६२२ ) तनगे मृत्युवरवानरि देन्दु सुपण्डितन् । अनेक-शील-गुणमालेगलिन्सगिदोप्पिदोन् ।। विनय देवसेन-नाम-महामुनि नोन्तु पिन् । इन दरिल्दु पलितङ्कदे तान्दिवमेरिदान् । [ मृत्यु का समय निकट जान गुणवान् और शीलवान् देवसेन महामुनि व्रत पाल स्वर्ग-गामी हुए।] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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