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________________ १२ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । [ मयूरग्रामसंघ की आर्यिका दमितामती ने कटवा पर्वत पर समाधि-मरण किया।] २८ (६८) (लगभग शक सं०६२२) श्री ॥ तपमान्द्वादशदा विधानमुखदिन् केरदोन्दुताधात्रिमेल । चपलिल्ला नविलूर सङ्घदमहानन्तामतीखन्तियार ।। विपुलश्रोकटवप्रनल गिरियमेल्नोन्तोन्दु सन्मार्गदिन् । उपमील्या सुरलोकसौख्यदेडेयान्तामेरिद इल्दाल मनम् ।। [ नविलूर संघ की अनन्तामती-गन्ति ने द्वादश तप धार कटवप्र पर्वत पर यथाविधि व्रतों का पालन किया और सुरलोक का अनुग्म सुख प्राप्त किया। २८ (१०८) (लगभग शक सं० ६२२) श्री ।। अनवरतन्त्रालम्पि भृत-शय्यममेन्ते विच्छेयं वनदोलयोग्य... नक्कुमदि......गलो... मनवमिकुत......रदि...नोन्तुसमाधिकूडिदों अनुपम दिव्यप्पदु सुरलोकद मार्ग दोलिल्दरिन्बिनिम् ।। मयूरप्रामसंङ्घस्य सौन्दर्या-प्रार्य-नामिका । कटप्रगिरिशैलेच साधितस्य समाधितः ।। [ उत्साह के साथ प्रात्म-संपम-सहित समाधि व्रत का पालन किया और सहज ही अनुपम सुरलोक का मार्ग ग्रहण किया । (1)} [मयूरग्रामसंघ की प्रार्या ने कटवा पर्वत पर समाधि-मरण किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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