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शासनवस्ति के पूर्व की ओर के
शिलालेख
२६ (८८)
( लगभग शक सं० ६२२) सुरचापंषोले विद्युल्लतेगल तेरवोल्मन्जुवोल्तारि बेगं। पिरिगुं श्रीरूप-लीला-धन-विभव-महाराशिगल्निल्लवार्ग । परमार्थ मेच्चेनानीधरणियुलिरवानेन्दु सन्यासन-गे। यदुरु सत्वननन्दिसेन प्रवर-मुनिवरन्देवलोककेसन्दान् ।।
रूप, लीला, धन व विभव, इन्द्र-धनुष, बिजली व ओसबिन्दु के समान क्षणिक हैं, ऐसा विचारकर नन्दिसेन मुनि ने सन्यास धार सुरलोक को प्रस्थान किया।]
२७ (११४)
( लगभग शक सं० ६२२) श्री ।। शुभान्वित-श्रीनमिलूरसङ्घदा । प्रभावती...... । प्रभाख्यमी-पर्वतदुल्ले नोन्तुताम् । स्वभाव-सौन्दर्य-कराङ्ग..
राधिपर ।। ग्रामे मयूरसङ्घऽस्य प्रार्यिका दमितामती। कटवप्रगिरिमध्यस्था साधिता च समाधिवा ।।
[ नमिलूरसंघ की प्रभावती ने इस पर्वत पर व्रत धार दिव्य शरीर प्राप्त किया।
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