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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । लति......स्थलमान तीरदाणमाकेलगे नेलदि मानदा सद्धम्मदा गेलि ससानदि पतान् । [ इस लेख का भाव स्पष्ट नहीं हुआ। २२ (४८) ( लगभग शक सं० १०२२) श्री अभयणन्दि पण्डितर गुड़ कोत्तय्य बन्दिल्लि देवर बन्दिसिद। [अभयनन्दि पण्डित के गृहस्थ शिष्य कोत्तय्य ने यहां श्राकर देव-बन्दना की। २३ (२८) (लगभग शक सं०६२२) स्वस्ति श्रीइनुङ गरा मेल्लगवासगुरवकल्बप्पबेष्टम्मेल्कालं केयदार्। [ इनूङ गूर के मेल्लगवासगुरु ने कल्वप्प (कटवप्र) पर्वत पर देहोत्सर्ग किया।] २४ (३५) (लगभग शक सं० ७२२) स्वस्ति .समधिगतपञ्चमहाशब्दपदडकेदलिध्वजसाम्या.. महामहासामन्ताधिपति श्रीबल्लभ "हा-राजाधिराज'.. मेश्वर-महाराजरा मगन्दिर् रणावलोक-श्रीकम्बय्यन् पृथुवीराज्यं गेये बरसल्वप्पु ल पेर्गस्वप्पिना पालदिन्न *चे Jain Education International la For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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