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चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । विद्रुमाधर शान्तिसेनमुनीशनाकिएवेल्गोल । अद्रिमेलशनादि विट्टपुनर्भवक्केरे आगि ..॥
[जो जैन-धर्म भद्रबाहु और चन्द्रगुप्त मुनीन्द्र के तेज से भारी समृद्धि को प्राप्त हुआ था उसके किञ्चित् क्षीण हो जाने पर शान्तिसेन मुनि ने उसे पुनरुत्थापित किया। इन मुनियों ने वेल्गोल पर्वत पर अशन श्रादि का त्याग कर पुनर्जन्म को जीत लिया।]
१८ ( ३२)
(लगभग शक सं० ६२२) श्री वेट्टेडे गुरवडिगल्मायाकस्सिङ्गन्दिगुरवडिगल्नोन्तुकालं-केयदा । [वेटेडेगुरु के शिष्य सिंहनन्दिगुरु ने व्रत पाल देहोत्सर्ग किया ]
२० (२६) ( लगभग शक सं० ६२२)
......यरुल्लरि पीठ दिल्दो नान् ......तारि कुमाररि नर्चिकेययेतां स्थिरदरलिन्तुपेगुरम सुरलोकविभूति एय दिदार ।
[......इस प्रकार पेगुरम (?) ने सुरलोक विभूति को ‘प्राप्त किया।
२१ (२६)
(लगभग शक सं० ६२२) स्वस्ति श्रीगुणभूषितमादि उलाडग्देरिसिदा निसिदिगे सद्धम्मगुरुसन्तानान् सन्द्विग-गणता-नयान् गिरितलदामे
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