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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । [ नेडुबोरे के पानप भटार ने व्रतपाल प्राणोत्सर्ग किया।] ७(२४) ( लगभग शक सं० ६२२ ) श्री कित्तरा वेल्माददा धम्मसेनगुरवडिगला शिष्यर् बालदेवगुरवडिगल सन्यासनं नोन्तु मुडिप्पिदार् । [कित्तूर में वेल्माद के धर्मसेनगुरु के शिष्य बलदेवगुरु ने सन्यासव्रत पाल प्राणोत्सर्ग किया। ८(२५) ( लगभग शक सं० ६२२) श्री मालनूर पहिनि गुरवडिगल शिष्यर उग्रसेनगुर• वडिगल ओन्दु तिङ्गल सन्यासनं नोन्तु मुडिपिपदार। [मलनूर के पट्टिनिगुरु के शिष्य उग्रसेनगुरु ने एक मास तक सन्यास-व्रत पाल प्राणोत्सर्ग किया।] (८) (लगभग शक सं० ६२२) श्री अगलिय मौनिगुरवर शिष्य कोहरद गुणसेनगुरवन्तॊन्तु मुडिप्पिदार। [अगलि के मौनिगुरु के शिष्य कोटर के गुणसेन गुरु ने व्रत पाल प्राणोत्सर्ग किया।] . ... १० (७) ....... (लगभग शक सं०.६२२) श्री पेरुमालु गुरवडिगला शिष्य धरणे कुत्तारेविगुरवि...डिप्पिदार। * एचि । जार Jain Education International For Private & Personal Use Only •www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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