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________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । [पेरुमालुगुरु की शिष्या धण्णेकुत्तारेविगुर्राव (१) ने ...... प्राणोत्सर्ग किया । ११ (६) ( लगभग शक सं० ६२२) श्री उल्लिकल्गोरवडिगल नोन्तु......दार् । [उल्लिकल गुरु (या उल्लिकल के गुरु) ने व्रत पाल प्राणो. त्सर्ग किया ] १२ (५) (लगभग शक सं० ६२२) श्रोतीवंद गारवडिगल नो..... [ तीर्थदगुरु (या तीर्थ के गुरु) ने व्रत पाल (प्राणोत्सर्ग किया)] १३ (३३) ( लगभग शक सं० ६२२) श्री कालाविर्गुरवडिगल शिष्यर तरकाड पेर्जेडिय मोदेय कलापकद गुरवडिगल्लिप्पत्तोन्दु दिवसं सन्यासनं नान्तु मुडिप्पिदार। [तलेकाडु में पेल्जेडि के कलापक* गुरु कालाविर गुरु के शिष्य ने इक्कीस दिन तक सन्यास बत पाल प्राणोत्सर्ग किया। १४ (३४) ( लगभग शक सं० ६२२) श्री-ऋषभसेन गुरवडिगल शिष्यर नागसेन गुरवडिगल सन्यासनविधि इन्तु मुडिप्पिदार् । * कलापक का शब्दार्थ मुञतृण या समूह होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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