SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चन्द्रगिरि पर्वत पर के शिलालेख । [ श्रदेयनाडु में चित्तूर के मौनि गुरु की शिष्या नागमति गन्तियर ने तीन मास के व्रत के पश्चात् शरीरान्त किया । ] ३ ( १२ ) ( लगभग शक सं० ६२२ ) 1 श्री । दुरिताभूद् वृषमान्कील्तलरे पोदेदज्ञानशैलेन्द्रमान्पोल् दुर- मिथ्यात्व-प्रमूढ़-स्थिरतर- नृपनान्मेटिंगन्धेभमयदान् । सुरविद्यावल्लभेन्द्रास्सुरवर मुनिभिस्तुत्य कल्बप्पिनामेल् चरितश्री नामधेयप्रभुमुनिन्त्रतगल् नान्तु सौख्यस्थनाय्दान् || [ पाप, अज्ञान व मिथ्यात्व को हत और इन्द्रियों का दमन कर कटवप्र पर्वत पर चरितश्री मुनि-व्रत पाल सुख को प्राप्त हुए । ] ४ ( १७ ) ( लगभग शक सं० ६२२ ) गनोन्तु मुडिप्पिदर | [ व्रतधार प्राणोत्सर्ग किया । ] ५ (१८) ( लगभग शक सं० ६२२ ) स्वस्ति श्री जम्बुनाथ गिर तील्थदोलू नान्तु मुडिप्पिदम् । [ जम्बुनाथगिर ने व्रतपाल प्राणोत्सर्ग किया । ] ६ ( ८ ) ( लगभग शक सं० ६२२ ) श्री ने डुबोरेय पानप -भटारनन्तु मुडिप्पिदार् । पल्लवनरेश नन्दिवर्म के एक दानपत्र में अदेयरराष्ट्र का उल्लेख श्राया है। संभव है श्रदेरेनाहु भी उसी का नाम हो (इंडि. एन्टी. म, १६८) * मौनद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy