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________________ ४३ प्रभाचन्द्रसिद्धान्त x x Jain Education International कुछ भूमि का दान दिया। ५०० अ०१००१ चैत्यालय के हेतु कोङ्गाल्व नरेश अदटरादित्य द्वारा भूमिदान । उपाधि-उभयसिद्धान्तरना देव For Private & Personal Use Only (१५३ ) ४२ गण्डविमुक्तदेव x मूलसंव " कोङ्गाल्वनरेश राजेन्द्र पृथुवी द्वारा बस्तीकानूर गण निर्माण और भूमिदान । तगरिल गच्छ ४३ देवनन्दि भट्टारक ४ ४५६ अ०१००० ४४ गोपनन्दि पण्डित चतुमुखदेव मू० दे० पु. ४६२ १०१०१५पारसलनरेश त्रिभुवनमल्ल एरेयङ्ग ने बस्तियों के जीणोद्धार के हेतु ग्राम का दान दिया। गोपनन्दि ने क्षीण होते हुए जैनधर्म का गङ्ग नरेशों की सहायता से पुनरुद्धार किया। वे षड्दर्शन के ज्ञाता थे। ४५ देवेन्द्रसिद्धान्तदेव " उपर्युक्त नरेश के गुरुत्रों में से थे। ४६ अकलङ्क पण्डित १६६ अ०१०२० ४७ सातनन्दि देव २२४ " चरणचिह्न हैं। ४८ चन्द्रकीत्तिदेव । २२५ ४६ अभयनन्दिपण्डित २२ अ०१०२२ एक शिष्य ने देववन्दना की। १० शुभचन्द्रसि० देव कु०मलधारिदेव मू० दे० पु. ४६०३७ ये पोसल नरेश विष्णुवर्धन के मनी ५६१०३६ गंगराज दण्डनायक और उनके कुटुंब ४५,६३ १०४० के गुरु थे। इन्होंने उक्त कुटुम्ब के सदस्यों ६४६५, से कितने ही जिनालय निर्माण कराये, " Ꮃ x xxxx "x xxx www.jainelibrary.org
SR No.003151
Book TitleJain Shila Lekh Sangraha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages662
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size21 MB
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